उत्तरकाशी: एक प्रसव पीड़िता की शनिवार को पहले कुदरत ने परीक्षा ली फिर स्वास्थ्य सुविधाओं और संसाधनों की उपलब्धता के कथित दावों में वह इधर से उधर ठेली जाती रही। वह खुद और अपने नवजात की जान बचाने के लिए चकरघिन्नी बन गई। पहले उसका सड़क पर प्रसव हुआ, फिर उसने एंबुलेंस में दूसरा बच्चा जना। इनमें से वह एक का ही मुंह देख पाई। उसकी जान बचाने के लिए उसे सुबह से मध्य रात्रि तक 17 घंटे से ज्यादा समय तक सैकड़ों किमी का सफर एंबुलेंस से तय करना पड़ा। लेकिन तीन अस्पतालों से उसे दौड़ाया गया। इलाज न मिलने पर रात साढ़े 12 बजे उसे चौथे अस्पताल में जाना पड़ा।
सीमांत जिले उत्तरकाशी के बड़कोट तहसील के बनास गांव के महेश की पत्नी 19 वर्षीय नीलम सात महीने की गर्भवती थी। शनिवार सुबह सात बजे हलका दर्द होने पर स्वजन ने सामान्य जांच के लिए उसे 45 किमी दूर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) बड़कोट ले जाने का निर्णय लिया। चूंकि डाक्टर ने गर्भ में दो बच्चों की बात पहले ही बता दी थी इसलिए स्वजन ने जांच कराना उचित समझा। सुबह सात बजे वे उसे बस में बैठाकर सीएचसी ले जा रहे थे। पांच किमी चले ही थे कि राना चट्टी पहुंचने पर नीलम की प्रसव पीड़ा असहनीय हो गई। इस पर वहीं उतरने का निर्णय लिया गया। इसके बाद एंबुलेंस 108 को काल किया गया।
शौच के लिए जाने पर नीलम ने सड़क किनारे दुकान की गैलरी में नवजात को जन्म दे दिया। इस बीच 108 एंबुलेंस पहुंच गई। इसके स्टाफ ने प्रसव में मदद की और जच्चा-बच्चा को सीएचसी बड़कोट ले जाया गया। इस बीच पांच किमी की दूरी तय करने पर स्याना चट्टी के पास नीलम ने एंबुलेंस में ही दूसरे बच्चे को जन्म दे दिया। हालांकि अंग विकसित न होने के कारण दूसरे बच्चे की मौत हो गई।
सीएचसी बड़कोट पहुंचने पर दोनों को दून मेडिकल कालेज रेफर कर दिया गया। सीएचसी प्रभारी डा. अंगद राणा ने बताया कि बच्चे की हालत ठीक नहीं थी। उसे आक्सीजन की जरूरत थी, बेहतर उपचार के लिए उसे रेफर करना पड़ा।
इसके बाद इस परिवार की परेशानियों का सिलसिला शुरू हो गया। खच्चर चलाने वाले नीलम के पति की जेब में पैसे नहीं थे इसलिए रिश्तेदारों से मांगकर सात हजार रुपये जुटाए गए। नौ बजे रात दून अस्पताल पहुंचे तो वहां ब्लड न होने की बात कहकर नवजात को भर्ती करने से मना कर दिया गया।
बताया गया कि बच्चे का वजन एक किलो 300 ग्राम है। उसके फेफड़े विकसित नहीं हैं। इस पर यह परिवार पास में महंत इंद्रेश अस्पताल गया। वहां बेड उपलब्ध न होने का हवाला देकर इलाज नहीं मिला। उम्मीद की रोशनी थामकर अंतत: एम्स ऋषिकेश जाना पड़ा।
चार एंबुलेंस बदलनी पड़ी
नीलम को बड़कोट से देहरादून और फिर ऋषिकेश जाने के लिए चार एंबुलेंस बदली पड़ी। सुबह सात बजे घर से चला यह परिवार राना चट्टी से साढ़े आठ बजे एंबुलेंस से रवाना हुआ और बड़कोट सीएचसी 12 बजे पहुंचा। वहां से सहसपुर तक दूसरी एंबुलेंस करनी पड़ी। सहसपुर से दून अस्पताल तक तीसरी एंबुलेंस में आए। चौथी एंबुलेंस डोईवाला से की जिसने एम्स छोड़ा। चार एंबुलेंस बदलने में काफी समय खर्च हुआ।
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