नैनीताल: हाई कोर्ट ने प्रदेश में अपनी तरह के पहले मामले में गंभीर बीमार पति की अभिभावक (गार्जियन) बनाने की पत्नी की मांग को चिकित्सा एवं प्रशासनिक रिकार्ड के आधार पर मंजूरी प्रदान की है। ऐसे व्यक्ति के लिए अभिभावक नियुक्त करने का कोई कानून नहीं है, इसलिए याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने केरल हाई कोर्ट के एक ऐसे ही मामले का हवाला दिया।
गुरुवार को न्यायाधीश न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए ऐतिहासिक निर्णय पारित किया।
नैनीताल शहर निवासी 35 साल की महिला ने अपने 42 वर्षीय पति मुकेश जोशी का अभिभावक बनने की अनुमति प्रदान करने को याचिका दायर की थी। मुकेश जून 2023 से कोमा में हैं। अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि अभिभावक के रूप में महिला किसी भी ऐसे दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने की हकदार होगी, जिस पर उसके पति के हस्ताक्षर किए जाने की आवश्यकता है।
कोर्ट ने अनुमति इस शर्त के साथ दी कि यदि उसके पति की तबीयत ठीक हो जाती है और वह स्वस्थ जीवन जीना शुरू कर देते हैं, या अधिकार का दुरुपयोग या वित्तीय अनियमितता होती है, या फिर यदि उपचार के संबंध में देखभाल, संरक्षण व सहायता की आवश्यकता होती है, या अन्य आवश्यक चीजें उपलब्ध नहीं कराई जाती हैं तो इस अनुमति को रद किया जा सकता है।
महिला के अनुसार उनका 2022 में मुकेश के साथ विवाह हुआ और उनकी एक साल की बच्ची भी है। पति पिछले साल दो ब्रेन स्ट्रोक के बाद कोमा में चले गए थे। वह नैनीताल के प्रतिष्ठित निजी कालेज में स्पोर्ट्स टीचर हैं और वेतन करीब 35 हजार मासिक हैं। महिला अपने पति का अभिभावक बनने की कोशिश कर रही हैं ताकि उनकी शादी का पंजीकरण हो सके। उनकी बेटी का आधार कार्ड बन सके और वह अपने पति के बैंक खाते का प्रबंधन कर सके। अब तक वह अपने पति के इलाज पर 35 लाख रुपये से अधिक खर्च कर चुकी हैं और उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उनके परिवार सामान्य पृष्ठभूमि से हैं।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता संदीप कोठारी के अनुसार पति की गंभीर हालत को देखते हुए कोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय दिया है। महिला को समाज से आर्थिक मदद की भी जरूरत है।
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